अनिल पंत , नैनीताल
महाराज उन महान विभूतियों में रहे जिनमें अद्भुद शक्तियां सम्पन्न रही। महाराज की कथनि और करनी यद्यपि अत्यन्त सरल एवं लौकिक दिखाई देती पर वे दिव्य होती। उनकी इच्छाशक्ति इतनी प्रबल थी कि वे जो चाहते वो घटित होकर रहता और जो नहीं, उनका होना सम्भव नहीं हो पाता। महाराज त्रिकालदर्शी रहे उनकी वाणी की सत्यता सुनने में तो साधारण लगती थी पर उसका बोध आगे चलकर उसी को हो पाता जिससे वह कही गई थी। वे प्रत्येक व्यक्ति पर अप्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कृपा करते रहते थे। उनमें ऐसी अलौकिक शक्ति थी कि वे किसी बात को होने की सूचना अपने भक्तों को प्रेम के साथ पूर्व में ही दे दिया करते थे और उपहार के दौर पर पूर्व में ही बता दिया करते थे। जो आगे चलकर सच साबित होती थी।
ऐसी ही एक घटना कुमारी गोदावरी जोशी जो नैनीताल के रामजे रोड पर निवास करती थी के साथ घटित हुयी। वे कहती थी कि एक दिन महाराज के दर्शन हेतु हनुमानगढ़ गई थी। उन्हंे देखते ही महाराज बोले,‘‘यह शादी नहीं करेगी’’ं । आगे चलकर वे उत्तर प्रदेश सरकार के योजना विभाग मेें नियुक्त हुई। परिस्थितियोंवश उनकी जिन्दगी में महाराज की वाणी सच साबित हुई। उन पर अपने भाई-बहनों की पढ़ाई -लिखाई, विवाह आदि की जिम्मेदारी आ पड़ी। ऐसी स्थितियों में मुझे विवाह का विचार ही नहीं रहा और आजन्म कुवाँरी रही। एक घटना गोदावरी जी और बताती है कि एक बार मैं महाराज के दर्शनों हेतु भूमियाधार पहुँची। तब वे बोले, ‘हमारी बी0 डी0 ओ0 लड़की आ गई ।’ मैं बी0 डी0 ओ0 भी नहीं, इस कारण उनकी बात मेरी समझ में नहीं आई। बाबा फिर बोले, ‘अमेरिका मत जाना।’ यहीं देश में रहकर सेवा करना, वहाँ जाकर अंग्रेज बन जायेगी।’ यह बात भी उनकी मुझे समझ में नहीं आयी। लगभग एक वर्ष पश्चात गरमपानी नैनीताल में मेरी नियुक्ति बी0 डी0 ओ0 के पद पर हो गई। कुछ समय बाद मुझे भारत सरकार की ओर से संयुक्त राज्य अमेरिका जाने का अवसर भी प्राप्त हुआ। पर बाबा की बात का स्मरण कर मैंने इसे स्वीकार नहीं किया।
इसी तरह की एक घटना नैनीताल में श्रीमती दुर्गा माई के साथ घटित हुई। उनका लड़का बी0 ए0 की परीक्षा दे चुका था, परन्तु उसे अपनी असफलता का भय बना रहता था। माई ने कैंची आश्रम में जाकर महाराज को पूरी स्थिति से अवगत कराया और पूछा कि क्या उनका लड़का परीक्षा में सफल होगा या नहीं? महाराज तुरन्त बोल उठे, ‘‘फेल – पास।’’ ऐसा कहकर वे मुस्कुराये और उपस्थित सभी भक्तजन हंस पड़े। वे फिर बोले, ‘‘पास हो जाएगा और बैंक में नौकरी करेगा।’’ और बिना वर्ष गंवाये दुर्गा माई का लड़का परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया और आगे चलकर उसकी बैंक में नौकरी भी लग गई। इसी तरह एक घटना मेरी भतीजी योजना पान्डे ‘ऋतु’’ जो इस समय हल्द्वानी निवास करती है, के साथ घटी वे कहती है कि एक बार हल्द्वानी से अल्मोड़ा जा रही थी। कैंची मन्दिर के पास पहुंचकर टैक्सी ड्राईवर से कुछ देर गाड़ी रोककर मंदिर दर्शन व प्रसाद प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की, परन्तु ड्राईवर ने समय कम होने की बात कहकर वहाँ रूकने से मना कर दिया और बाहर से ही हाथ जोड़ने को कहने लगा। उसके बाद अल्मोड़ा पहुँचकर मुझे रात में स्वप्न में कैंची मन्दिर परिसर में कम्बल ओड़कर बाबा जी के दर्शन हुए और बोले,‘तुझे प्रसाद मिल जायेगा।’ सुबह उठकर मैं इस स्वप्न के बारे में सोचती रही व समय के साथ इस बात को भूल गई। कुछ दिन बाद अचानक एक दिन शाम को मेरे मामा के बेटे ने मेरे हाथ में एक लिफाफा दिया। जैसे ही मैंने लिफाफे को खोला तो उसमें महाराज जी के कैंची मन्दिर का पन्द्रह जून का प्रसाद था। उसे देखते ही मुझे स्वप्न का स्मरण हो आया और आंखों से अश्रू निकल पड़े।