भारत के इतिहास में ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं, जिन्होंने अपने अन्वेषणों और यात्राओं के माध्यम से देश की भू-मानचित्र कला को नई दिशा दी। उनमें से एक व्यक्ति थे पं. नैन सिंह रावत ( Pandit Nain Singh Rawat)। पं. नैन सिंह रावत ने 19वीं सदी में भारतीय हिमालय के पहले हिस्सों की खोज की। उन्होंने अंग्रेजों के लिए हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो (Tsangpo) के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया। उन्होंने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण भी किया। वे अपनी यात्राओं की डायरियां भी तैयार की थीं। उन्होंने तिब्बती, हिन्दी, तिब्बती, फारसी, और अंग्रेजी की भाषाओं में अच्छा ज्ञान रखते थे। उनका योगदान भारतीय भू-मानचित्र कला में अद्वितीय रहा है।
21 सितम्बर, 1830 को कुमाऊं (उत्तराखंड) के जोहार घाटी के एक गांव में जन्मे पं. नैन सिंह रावत Pandit Nain Singh Rawat वह व्यक्ति थे, जिन्होंने काठमांडू से लेकर ल्हासा और मानसरोवर झील का मानचित्र, पैदल दूरी नापकर बनाया तथा तिब्बत को विश्व मानचित्र पर लेकर आए। मुनस्यारी के मिलम गांव निवासी पं. नैन सिंह रावत Pandit Nain Singh Rawat एक सर्वेयर के तौर पर, वह दोनों पैरों के बीच में साढ़े 33 इंच लंबी रस्सी बांधते थे। चलते हुए जब दो हजार पग पूरे हो जाते तो उसे एक मील माना जाता था। यह नैन सिंह की समझदारी का ही पर है कि यह सटीक मानचित्र तैयार हुआ। 16 वर्ष तक घर नहीं लौटने पर लोगों ने उन्हें मृत तक मान लिया था, किन्तु पत्नी को विश्वास था कि वह अवश्य लौटेंगे। वह प्रति वर्ष उनके लिए ऊन कातकर एक कोट व पैजामा बनाती थीं। जब वे 16 वर्ष पश्चात वापस लौटे, तो पत्नी ने उन्हें एक साथ 16 कोट व 160पैजामे भेंट किए।
बड़े दुख की बात है कि दुनियां की खोज करने वालों में हमें बस कोलंबस और वास्को डीगामा जैसे नामों के बारे में जानकारी दी जाती है, नैन सिंह रावत Pandit Nain Singh Rawat के बारे में कोई नहीं बताता, हम भारतीय होकर भी भारतीयों के योगदान को भूलते जा रहे हैं?