कारगिल युद्ध Kargil War भारतीय इतिहास के उन क्षणों में से एक है जो वीरता, साहस और बलिदान की मिसाल पेश करता है। इस युद्ध में कई बहादुर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, और उन्हीं में से एक महान योद्धा थे मेजर राजेश अधिकारी। उनका जीवन, साहस और बलिदान भारतीय सेना और देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। Kargil Hero Major Rajesh Singh Adhikari
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मेजर राजेश अधिकारी का जन्म 25 दिसंबर 1970 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था। उनका परिवार एक साधारण लेकिन देशभक्त परिवार था। उन्हें बचपन से ही देशभक्ति और अनुशासन की सीख मिली। राजेश की प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के प्रतिष्ठित सेंट जोसेफ़स कॉलेज St.Joseph’s College, Nainital से 1987 में हुई, माध्यमिक शिक्षा राजकीय इंटर कॉलेज नैनीताल से पूर्ण की । उन्होंने बीएससी कुमाऊँ यूनिवर्सिटी, नैनीताल से किया। इसके बाद उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) देहरादून से प्रशिक्षण प्राप्त किया और सेना में शामिल हो गए।
सैन्य करियर मेजर राजेश अधिकारी 11 दिसंबर 1993 को 23 वर्ष की उम्र में भारतीय सैन्य अकादमी से 2 Mech Inf battalion में कमिशन हुए। उनकी बहादुरी, नेतृत्व क्षमता और समर्पण ने उन्हें जल्द ही एक प्रभावी अधिकारी बना दिया। सेना में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण मिशनों में भाग लिया और हर बार अपनी योग्यता साबित की।
कारगिल युद्ध
1999 में, जब पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ की, तब भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया। इस ऑपरेशन में मेजर राजेश अधिकारी ने अपनी कंपनी की कमान संभाली और दुश्मनों के खिलाफ कई साहसी अभियानों को अंजाम दिया। कारगिल युद्ध के दौरान, मेजर राजेश अधिकारी को महत्वपूर्ण तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने का आदेश मिला। यह मिशन अत्यंत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि दुश्मन ऊँचाई पर बैठा था और भारतीय सेना पर लगातार गोलाबारी कर रहा था। 30 मई 1999 की रात, मेजर अधिकारी ने अपनी कंपनी को संगठित किया और तोलोलिंग पर हमला किया। यह एक बहुत ही कठिन और जोखिम भरा ऑपरेशन था, लेकिन मेजर अधिकारी ने अपनी वीरता और नेतृत्व से अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाया।
वीरगति और सम्मान
तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करते समय, मेजर राजेश अधिकारी ने असाधारण बहादुरी का प्रदर्शन किया। दुश्मन की भारी गोलाबारी के बावजूद और गंभीर रूप से घायल होते हुए भी दुश्मन के बंकरों पर हमला कर वहां मौजूद दुश्मन के सैनिकों को मार गिराया , उन्होंने अपने सैनिकों को आगे बढ़ाया और दुश्मन की कई चौकियों को नष्ट किया और 2 बंकरों पर कब्जा कर लिया, जो बाद में प्वाइंट 4590 को जीतने में मददगार साबित हुए। इस सर्वोच्च बहादुरी के प्रदर्शन में वह बेहद गंभीर रूप से घायल हो गए और 30 मई 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए। बलिदान के 13 दिन बाद युद्धक्षेत्र से उनका पार्थिव शरीर बरामद हुआ था। उनकी इस अद्वितीय वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह भारतीय सेना का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है, जो युद्ध के मैदान में असाधारण साहस और नेतृत्व के लिए दिया जाता है। मेजर अधिकारी का बलिदान और साहस हमेशा भारतीय सेना और देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। तोलोलिंग की चोटी में जब वह लगभग 16000 फ़ीट की ऊंचाई पर थे , उस समय उन्हें उनकी पत्नी किरण का लिखा एक पत्र प्राप्त हुआ , जिसे उन्होंने यह कह कर अपनी जेब में रख दिया कि कल जब ऑपरेशन पूरा होकर शान्ति हो जायेगी तो मैं इसे पढूंगा , लेकिन वो मौक़ा फिर कभी नहीं आया। ( ” I will read it in peace tomorrow after the operation is finished” , but unfortunately, he never got a chance to read that letter.)
अदम्य साहस की मिसाल मेजर राजेश अधिकारी
मेजर राजेश अधिकारी का बलिदान न केवल उनके परिवार और दोस्तों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। उनकी वीरता की कहानियाँ आज भी स्कूलों और कॉलेजों में सुनाई जाती हैं ताकि युवा पीढ़ी को उनके जैसे बहादुर बनने की प्रेरणा मिले। कारगिल विजय दिवस और उनके सर्वोच्च बलिदान दिवस के दिन प्रत्येक वर्ष नैनीताल के तल्लीताल दर्शन घर पार्क में स्थापित उनकी प्रतिमा में कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है और राष्ट्र के बलिदान को याद किया जाता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची वीरता और देशभक्ति किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानती। चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, एक सच्चा सैनिक अपने देश के लिए हमेशा खड़ा रहता है। मेजर राजेश अधिकारी की विरासत हमें यह याद दिलाती है कि देश के प्रति हमारा कर्तव्य सर्वोपरि है और हमें हमेशा उसके लिए तैयार रहना चाहिए।
मेजर राजेश अधिकारी का जीवन और बलिदान भारतीय सेना और देशवासियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनकी वीरता और देशभक्ति हमें यह सिखाती है कि देश की सेवा और रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। मेजर अधिकारी ने अपने साहस और बलिदान से यह साबित कर दिया कि सच्चे हीरो कभी नहीं मरते, वे अपनी कहानियों और आदर्शों में हमेशा जिंदा रहते हैं। उनका जीवन और बलिदान हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा और हमें अपने देश के प्रति कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।