अनिल पंत , नैनीताल
Miracles of Neeb Karori Baba महाराज की कृपा करने की अपनी अनूठी शैली थी। जिन पर उनकी कृपा हुई वे इस शैली से परिचित हो गये और उनका विश्वास भी दृढ़ हो गया। महाराज के अनन्य भक्त हैं जिन पर उनकी कृपा रही और महाराज ने उन्हंे वह सम्मान दिया जिसकी वे कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। ऐसे ही एक भक्त/सेवक भगवान सिंह बिष्ट (भवनिया) हैं। जो इस वक्त हनुमान सेतु संकट मोचन हनुमान मंदिर लखनऊ के मुख्य पुजारी हैं। पुजारी भगवान सिंह बिष्ट जी को 14 वर्ष की उम्र से ही बाबा नीब करौरी के साथ रहनेे का मौका मिला। वे अपने अनुभव याद करते हुए बताते हैं कि ‘सन 1964 में जब मैं 12 वर्ष का था तब मुझे स्कूल की तरफ से एक टूर में नैनीताल जाने का मौका मिला। यहाँ कैंची आश्रम में स्कूली बच्चों को दर्शन के लिए भेजा गया जहां पहली बार मेरी मुलाकात बाबा से हुई। तभी से मुझे बाबा से विशेष लगाव हो गया था। मेरा घर बाबा के आश्रम से 40 किमी. दूर रानीखेत में था। दो साल बाद एक बार फिर बाबा जी के पास जाने का मौका मिला। इसके बाद मेरा ज्यादातर समय बाबा जी के पास ही बीतने लगा। मेरे माता पिता को यह अच्छा नहीं लगता था, पर मेरा मन दीक्षा की तरफ मुड़ने लगा था। कुछ दिनों बाद मैं बाबा के साथ वृन्दावन आश्रम चला गया। मेरा काम बाबा की सेवा करना था। उनका शरीर भारी था जिस वजह से मैं ही उन्हें स्नान कराता था। उनके वस्त्र, भोजन आदि का प्रबंध भी मैं ही करता था। Kainchi Ashram Neem Karoli Baba
एक दिन वृंदावन आश्रम का मंदिर नहीं खुला। बाबा को जब इस बात का आभास हुआ तो उन्होंने मुझे पुजारी के कमरे में जाने को कहा। मैंने वहां जाकर देखा कि न तो पुजारी वहां है और न ही उनका सामान। लौटकर बाबा को यह बात बताई तो वे बोले, ‘भाग गया बदमाश।’ फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मंदिर में ले गए। बाबा ने मुझसे पूछा, ‘तुम पूजा कर लेते हो?’ मैंने मना कर दिया। दरअसल मैं चौबीस घंटे बाबा जी के साथ तो रहता था पर पूजा-पाठ के नाम पर मुझे सिर्फ हाथ जोड़ना ही आता था। मेरे न कहने पर बाबा जी ने मुझे पूजा की विधि बतानी शुरू की। एक दिन बाबा मंदिर के बाहर परिक्रमा मार्ग पर बैठे थे। तभी वहां से एक गौर वर्ण साधु को आते देख उन्होंने उसे अपने पास बुलाया। बात करने पर मालूम हुआ कि वह साधु विðान थे। बाबा ने मेरी तरफ इशारा करते हुए उस साधु से कहा, ‘इस लड़के को पूजा संबन्धित सभी विधियां सिखा दो।’ इस तरह मेरी पुजारी बनने की शिक्षा शुरू हो गई। वे साधु मुझे रोज भगवान को जगाना, स्नान कराना, भोग लगाना आदि सिखाने लगे। Miracles of Neeb Karori Baba
एक दिन आनंदराम जयपुरिया का वृन्दावन आगमन हुआ। इन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मुझसे ईष्र्या करने वाले कुछ लोगों ने आनंदराम जयपुरिया को मेरे खिलाफ यह कहकर भड़का दिया कि मंदिर में कोई अच्छा पुजारी नहीं है। एक ठाकुर लड़का है जो पूजा कराता है और वह पढ़ा-लिखा भी नहीं है। इस पर गुस्से में आकर जयपुरिया अपने परिवार व अन्य साथियों के साथ अपनी गाड़ीयों का काफिला लिये मेरे पास पहुंचे। बाबा जी चार-पांच दिन पहले ही किसी दूसरे आश्रम गये हुए थे। जयपुरिया ने आते ही मुझसे क्रोध मेें सवाल दागने शुरू कर दिए,‘तुम कहां के रहने वाले हो, नाम क्या है, कितने पढ़े-लिखे हो, संस्कृत आती है या नहीं?’ मैं कुछ जवाब नहीं दे पाया। तभी अचानक वहां बिना किसी पूर्व सूचना के बाबा नीब करौरी का आगमन हो गया। वे मंदिर में आने के बजाय सीधे अपने कमरे में जा रहे थे। जाते हुए उन्होंने आवाज दी, ‘जयपुरिया इधर आओ।’ Miracles of Neeb Karori Baba
यह सुनकर जयपुरिया बाबा जी के कमरे में चले गये। उनके पीछे-पीछे बाबा के साथ आये अन्य लोग व जयपुरिया का लश्कर भी वहां अंदर पहुंच गया। कमरा लोगों से भर चुका था। बाबा जी ने जयपुरिया से कहा, ‘तुम उस लड़के को क्यांे डांट रहे थे।’ जयपुरिया ने कहा, ‘वो पढ़ा-लिखा नहीं है …………। ’ यह सुनकर बाबा ने मुझे कमरे बुलवाया। मैं डरा हुआ था और अंदर नहीं जा रहा था। मैं खुद को अपमानित महसूस कर रहा था। और साथ ही यह भी लग था कि आज मुझे डांट पडे़गी। किसी ने मुझे बहलाकर और डांट न पड़ने का आश्वासन देते हुए कमरे के अंदर पहुँचा दिया। अंदर मैंने देखा कि बाबा जी जयपुरिया को डांट रहे थे। वे कह रहे थे, ‘तुमने कैसे उस लड़के का अपमान कर दिया। वो वेद-पुराण सब जानता है। तुम्हें पता भी है कितना ज्ञानी है वो?’ इस पर भी जयपुरिया का घमंड उस पर हावी था। वह बोला, ‘अगर यह पढ़ा-लिखा है तो इससे गीता पढ़वा दीजिए’। बाबा का क्रोध और बढ़ गया, उन्हें इतना क्रोधित मैंने पहले कभी नहीं देखा था। क्रोध में वे कभी अपना दायां पांव बायें पर तो कभी बायां पांव दायें में रख रहे थे। बाबा जी तख्त पर बैठे थे और उन्होंने मुझे अपने पास नीचे बैठाते हुए कहा, ‘इसको पूरी गीता कंठस्थ है।’ यह सुनकर मैं कांपने लगा, क्योंकि मुझे तो गीता का कोई श्लोक नहीं आता था। बाबा अपने पांवों को इधर-उधर कर ही रहे थे उनके पांव का अंगूठा मेरे माथे को स्पर्श करता हुआ निकल गया। उसके बाद मैं बेहोश सा हो गया। मुझे बस इतना ध्यान है कि मेरे मुंह से गीता के शुð श्लोक निकल रहे थे। यूं लग रहा था कि जैसे कोई मेरे अन्दर बैठकर श्लोक बोल रहा है। थोड़ी देर में बाबा जी ने मेरे सिर पर हाथ मारते हुए कहा, ‘बस करो।’ मैं शान्त हो गया। इसके बाद जयपुरिया व उनके परिजन रोने लगे और बाबा से क्षमा मांगने लगे। इस पर बाबा जी ने कहा कि इस लड़के से क्षमा मांगो जिसका तुमने अपमान किया है। उसके बाद मैं जब तक वहां रहा जयपुरिया हाउस से मेरा पूरा ख्याल रखा जाता रहा। 1970 में बाबा जी ने मुझे अपने बेटे के साथ लखनऊ मंदिर भेज दिया। तब से मैं यहीं सेवा कर रहा हूँ। Miracles of Neeb Karori Baba