नित्यानन्द मिश्र, अल्मोड़ा-
नैनीताल में सर्वप्रथम नीब करौरी महाराज 1937-38 में आये। उस समय मैं स्थानीय चेतराम साह ठुलघरिया हाईस्कूल में अध्यापक था। तल्लीताल के नया बाजार मुहल्ले में रहता था। पास ही बगल में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री पं0 गोविन्द बल्लभ पन्त जी का आवास था। इतवार का दिन था। पिता जी बरामदे में दोपहर के समय धूप में रामायण पढ़ रहे थे। मैं भी उनके समीप बैठा था। पिता जी पढ़ रहे थे, ‘बिनु हरि कृपा मिलहीं नहीं सत्ता।’ इसी समय पं0 मुरलीधर जी अपने बड़े भाई पं0 कृपाल दत्त जी के साथ हमारे यहाँ आये। दोनों भाई पिताजी के भांजे हुए। कृपाल दत्त पंत जी और पिता जी समवयस्क थे। दोनों ने ही सेवा वृत्ति से अवकाश ले लिया था। मुरली धर जी ने आते ही पिताजी से कहा, ‘मामा जी, आज कल हमारे यहां एक महात्मा आये हुवे हैं। दूसरों के मन की बात बतला देते हैं। बच्चों की भांति निर्दोष हैं।’ मैंने पूछा, ‘क्या हमारे बारे में भी कुछ कह रहे थे?’
बड़े भाई श्री कृपाल दत्त जी ने कहा, ‘अरे, वह तो आज ही प्रातः कह रहे थे कि तुम्हारा मामा रामायण का बड़ा भक्त है। पर है क्रोधी। लड़का उसका अच्छा है।’ इस पर पिताजी भांजे पर बिगड़े और कहने लगे, ‘तुम झूठ मूठ महात्मा का नाम क्यों लेते हो? तुम लोग मेरे स्वभाव को जानते हो। यही बात महात्मा को बतलाई होगी।’ कृपाल दत्त जी ने कहा, ‘नहीं मामा जी, हम ने तो सिर्फ यह कहा कि आज दोपहर में हम मामा जी के यहां जायेंगे। इस पर उन्होंने उपर्युक्त शब्द आप के और नित्यानंद के प्रति कहे।’ हालाँकि विश्वास होने का कोई कारण नहीं था। श्री कृपाल दत्त जी की स्वयं एक उच्च साधक थे। श्री राम के अनन्य भक्त थे। मेरे आजीवन पथप्रदर्शक और गुरू रहे।
इस घटना के दो तीन महीने बाद एक दिन दोपहर को कृपाल दत्त जी हमारे यहाँ आये। उस समय पिता जी अलमारी से रामायण निकाल रहे थे। भांजे को देखते ही प्रसन्न मुद्रा में पिता जी बोले, ‘कृपाल, तुम ठीक समय आये। मेरी आँखों की ज्योति मोतिया बिन्दु के कारण कम हो गयी है। तुम रामायण पढ़ोगे और मैं सुनूँगा’। कृपाल दत्त जी बोले, ‘यही बात घर से आते समय महात्मा जी ने मुझसे कही। उन्होंने कहा, तेरे मामा को दिखता कम है। तू उसे जाकर रामायण सुना।’ इस पर पिता जी रूष्ठ होकर बोले, कृपाल, न तो मैंने तुम्हारे महात्मा को देखा है, न उन्होंने मुझे देखा। उन्हें मेरे बारे में कैसे मालूम है? सब बातें तुमने कही होंगी।कृपाल दत्त जी बोले, ‘मामा जी सब बात आप से कह दी। आप यकीन करें या नहीं।’ वे रामायण पढ़ने लगे? पिता जी सुनने लगे। इस घटना पर फिर चर्चा नहीं हुई।यहाँ पर इस घटना का जिक्र इसलिये किया कि मेरे पिता जी एवं मैं साधु संतों से सदा दूर रहे। उनकी कभी संगत नहीं की। पर पिता-पुत्र दोंनो इस अद्वितीय अतीन्द्रिय शक्ति सम्पन्न योगी के व्यापक प्रभाव से अपने को बचा न सके। दर्शन न होने पर भी वे हमारे परिवार के बारे में बराबर रूचि लेते रहे। दर्शन तो दस बारह साल में हुए।
इन दस बारह साल के अन्दर नीब करौरी महाराज न केवल नैनीताल में अपितु सारे प्रान्त में प्रसिð हो गये। सैकड़ों की संख्या में भक्तों के घरों में भी वे घंटों बैठे रहते थे। हमारा परिवार भी सोचता था कि हमारे यहाँ आते तो कितना अच्छा होता। किन्तु न मेरे पिताजी न मैं उनके दर्शन हेतु पास गये। उनकी चर्चा घर – घर में होती थी। उनकी अतीन्द्रिय शक्ति से सभी मोहित थे।
(लेखक स्व० श्री नित्यानंद मिश्र बिरला विद्या मन्दिर, नैनीताल में शिक्षक रहे थे एवं जाने माने इतिहासकार थे। कई भाषाओं के ज्ञाता होने के साथ कुमाऊं के इतिहास पर भी उनका काफी विस्तृत लेखन कार्य रहा था। यह लेख उनके सुपुत्र स्व. हरीश चंद्र मिश्र द्वारा सुलभ कराया गया था, जो स्वयं में लेखक और इतिहासकार रहे थे । )