सफलता की कहानी – कोरोना के कारण दिल्ली छोड़ वापिस आना पड़ा , फिर शुरू किया मशरूम की खेती का व्यापार , आज कमा रही लाखों में

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कोरोना काल में अधिकतर लोगों के हाथों से रोजगार और व्यापार छिन गया। कई लोग जो जमे जमाये व्यवसाय और रोजगार में थे , उन्हें उससे हाथ धोना पड़ा। यह एक ऐसा दौर आया था , जिसकी किसी ने भी कोई कल्पना नहीं की थी। लोगों को रोजगार से हटा दिया गया था। ऐसे में उनके पास घर वापसी के अन्य कोई साधन नहीं थे। लोगों ने अपने गाँव की और वापसी करना शुरू कर दिया था। ऐसा ही एक वाक्या आया दिल्ली में रहने वाली निर्मला फर्त्याल के साथ। कोरोना के कारण उन्हें सपरिवार वापस अपने गाँव लौटना पड़ा। निर्मला फर्त्याल अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत कनालढुँगा में रहती हैं ।

अपनी संघर्ष की कहानी बताते हुए वह कहती हैं कि मैं वर्ष 2019 तक दिल्ली में रहती थी। वर्ष 2020 में कोरोना की ऐसी महामारी आयी जिसके कारण मुझे व मेरे परिवार को दिल्ली छोड़ कर अपने गाँव आना पड़ा। गाँव आके बिल्कुल हम बेसहारा हो गये थे।आजीविका का कोई साधन नहीं था। सामने भविष्य को लेकर चिंता और अनिश्चितत्ता थी। ऐसे में अल्मोड़ा जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी अल्मोड़ा सुश्री वंदना सिंह , मुख्य विकास अधिकारी अंशुल सिंह और परियोजना निदेशक अल्मोड़ा चन्दा फर्त्याल के दिशा निर्देशन में संचालित एक परियोजना के बारे में जानकारी मिली। घर आके मुझे मिशन के अधिकारियों द्वारा एक सरकारी योजना के बारे में जानकारी मिली, जिसके छ: महिने बाद मैं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुडी । मेरे समूह का नाम देवी माँ स्वंय सहायता समूह है, फिर हमारा द्वारा ग्राम संगठन का गठन किया गया , जिसका नाम देवभूमि ग्राम संगठन रखा गया और मुझे उसमें सक्रिय महिला के रूप में चुना गया । एनआरएलएम द्वारा हमारे समूह को आर०एफ की धनराशि मिली व सी०सी०एल की धनराशि भी प्राप्त हुई। हमारे समूह को आरसेटी हवालबाग के माध्यम से मशरूम की ट्रेनिंग दी गई। मैं मशरूम की खेती व मशरूम बेचना का काम भी करती हूँ, जिससे साल में रू 35000 की आय हो जाती है।

वर्तमान समय में मैनें मशरूम के साथ-साथ मधुमक्खी पालन का कार्य भी शुरू कर दिया है। जिसमें हमारे द्वारा शहद बेचा जाता है जिसकी बाजार में बहुत मांग रहती है । जिससे साल में रू 2,00,000 दो लाख की आय हो जाती है। मै अपने व्यवसाय के साथ-साथ सी०आर० पी का कार्य भी करती हूँ, मेरे द्वारा कई गाँवों में इस योजना के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है व उनको समूह तथा ग्राम संगठन से जोड़ा जाता है। अब मैं एक आत्मनिर्भर महिला बन गई हूँ ।

इस प्रकार अल्मोड़ा जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत संचालित आजीविका योजनाओं के माध्यम से स्वरोजगार की एक नयी कहानी लिखी गयी जिसने कई ऐसे परिवारों को आर्थिक सबलता प्रदान की , जो कोरोना महामारी के कारण दिशाहीन हो गए थे।

( साभार : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा प्रकाशित उजाले की ओर पत्रिका वर्ष 2022 – 23 से उद्धृत )

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