आज है प्रताप भैयया की जयन्ती , सर्वहारा वर्ग को समर्पित रहे प्रताप भैयया

0
233

जिन्दगी जिंदादिली का नाम है। हम अपने विद्यालयों में संरक्षक सदन बनाएगे, और बच्चों का बाल संसार बनाएगे। मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारा से विद्यालय बडा होता है जहां बच्चे अपने चरित्र का निर्माण कर सकते हैं। …….प्रताप भैयया

इस कर्म प्रधान समाज में कर्म को ही साधना समझने वाले महापुरूषों का नितान्त अभाव तो नही पर न्यूनता अवश्य है। प्रायः सभी लोग कर्म को ही प्रधानता देते है दूसरों को कर्म करने का उपदेश देते हैं, पर जब उपदेशों को स्वयं अपने जीवन में उतारने की बात करते हैं तो बहुत कम लोग खरे उतरते है। संसार में हम ऐसे लोगों के सम्पर्क में आते हैं जिनके कर्मठ व्यक्तित्व , सफल कृतित्व व समर्पण की भावना से हम प्रेरित व प्रभावित हुए विना नही रह सकते। शिक्षा का दीपक जलाने वाले प्रताप भैयया का जन्म 12 दिसम्बर 1932 को नैनीताल जिले के ओखलकाडा विकासखण्ड में च्यूरीगाड नामक गांव में हुआ था। पिता आन सिंह एवं माता पार्वती के स्नेह व लाड प्यार में पले प्रताप भैयया की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गांव में तथा जूनियर तक की शिक्षा ओखलकाडा व रामगढ में हुई। गांव में माध्यमिक कालेज न होने के कारण वे नैनीताल आये और इण्टर की शिक्षा यहीं से प्राप्त की । उसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लखनउ विश्वविद्यालय चले गए। इससे पता चलता है कि उस समय ग्रामीण क्षेत्र में पैदा होने के बाद भी उनके माता पिता की आर्थिक स्थिति मध्यम वर्ग की ही थी। लेकिन शिक्षा के प्रति जागरूकता इस बात का प्रमाण था, कि उन्होंने अपने बडे पुत्र प्रताप को पढने हेतु लखनउ विश्वविद्यालय भेजा । प्रताप भैयया के दादा जी स्व0 नैन सिंह जी काफी जागरूक एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। भाबर क्षेत्र में उनका अच्छा कारोबार था। पिता को ये सारी सम्पति विरासत में मिली थी। लेकिन भाबर में किसी अज्ञात बीमारी के भय से इनके दादा जी अपने परिवार सहित भाबर छोडकर गांव च्यूरीगाड में आकर बस गये। और यहीं पर उन्होने खेती का कारोबार शुरू कर दिया। प्रताप आठ भाई बहिनों में सबसे बडे थे। तथा पढाई के प्रति बेहद ही संवेदनशील । उनके स्वभाव के अनुकूल उनकी पढाई पर अधिक ध्यान दिया गया।

ग्रामीण परिवेश के प्रभाव से ये मुक्त न रह सके और जब ये कक्षा 9 में अध्ययन कर रहे थे तभी उनका विवाह बीना जीे से हो गया। विवाह ने उनके अध्ययन में किसी भी प्रकार का कोई व्यवधान पैदा नहीं किया। बीना जी परिवार के साथ खेती के काम में व्यस्त हो गईं, और प्रताप भैयया आगे की पढाई के लिए लखनउ चले गए। कालेज की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान उनका सम्पर्क तत्कालीन कुलपति आचार्य नरेन्द्र देव से हुआ। आचार्य जी कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे। और वे कार्लमार्क्स के सिद्धान्त को भारतीय मजदूरों की आर्थिक स्थिति को जोडकर उसे सुधारना चाहते थे। आचार्य जी का सादा जीवन उच्च विचार का प्रभाव प्रताप भैयया पर भी पडा। प्रताप भैयया ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत लखनउ विश्वविद्यालय से ही की थी। आचार्य जी से प्रभावित होकर वे नैतिक मूल्यों की राजनीति करने लगे। उन्होने आचार्य जी को अपना संस्कार पिता तथा गुरू के रूप में प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार से प्रताप भैयया ने लखनउ विश्वविद्यालय से एम0ए0, एल0 एल0 वी, डी0 पी0 ए0, आई0 टी0 डी0 की शिक्षा प्राप्त की।

वैचारिक परिवर्तन एवं राजनीतिक उथल पुथल का प्रभाव प्रताप भैयया जी पर भी पडा। उनके पिता जी क्रांग्रेस पार्टी में थे। और उन्होंने अपने सिद्धान्तों से कोई समझौता नहीं किया। तथा अपने पुत्र को समर्थन नहीं दिया। जबकि प्रताप भैयया ने 1948 में आचार्य जी से प्रभावित होकर सोसलिस्ट पार्टी अपना ली थी। 1952 में जब नैनीताल में विधानसभा के लिए चुनाव हुआ तो सोसलिस्ट पार्टी की ओर से प0 नारायण दत्त तिवारी जी को, टनकपुर से प्रताप भैयया, तथा काशीपुर से श्री राम दत्त जोशी को उम्मीदवार बनाया गया। और ये तीनों ही अपने अपने क्षेत्रों से भारी बहुमत से चुनाव जीत गये। जिसमें प्रताप भैयया सबसे कम उम्र के विधायक बनकर उत्तरप्रदेश की विधानसभा में पहुॅचे। तथा कम उम्र में ही चौधरी चरण सिंह मंत्रिमण्डल में स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री के रूप में कैबिनेट मंत्री बनकर अपने दायित्व को पूरी निष्ठा एवं लगन से निभाया।

प्रताप भैयया, जो कि मूलतः एक समाज सुधारक व समाजवादी चिन्तक थे। अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण दशकों से लोगों को अपने अनुठे अंदाज से प्रभावित करते आ रहे थे। उनमें लोगों को अभिप्रेरित करने की विषिष्टता निहित थी, जिसका आज के अधिकांश राजनेताओं व समाज सुधारकों में अभाव सा पाया जाता है। समाजवाद की जिस प्रकार की संकल्पना भारतीय परिप्रेक्ष में की गई थी, उसको साकार करने के लिए भारतीय जनमानस की आवष्यकताओं और भावनाओ के अनुसार पुनर्व्यवस्थित करना अत्यन्त आवश्यक कार्य था जो नये भारत के सत्ताधरियों के लिए बडी चेतावनी थी। आज तक शिक्षा व्यवस्था तदनुरूप नहीं हो पाई है। जबकि प्रताप भैयया अपने सीमित साधनों व असीमित उत्साह से शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते आ रहे थे, भले ही उनके योगदान का लाभ ज्यादातर पर्वतीय अंचल के लोगों को ही मिल सका है। उनके द्वारा स्थापित भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल एवं अन्य शिक्षण संस्थायें जो अमर शहीदों के बलिदान व शौर्य के गीत गुनगुनाता रहे है, चार दशकों से इस प्रान्त तथा बाहर के शिक्षार्थियों को अनेक विशिष्टताओं व परम्पराओं के कारण न केवल अपनी ओर आकर्षित करते हैं बल्कि उन्हें सन्तुष्टि भी प्रदान करते हैं। इसलिए समय समय पर राज्य तथा केन्द्र सरकार द्वारा उनके भगीरथ प्रयासों की सराहना की जाती रही है। प्रताप भैयया शिक्षा को सामाजिक आयाम देना चाहते थे जिससे शिक्षा में विषमता विहीन समाज की स्थापना हो सके। वे जाति विहीन व वर्ग विहीन समाज की कल्पना करते थे, तथा इसे धरती में उतारने हेतु अपनी एक स्पष्ट विचारधारा रखते थे। अगर सरकार उनकी शिक्षा संबंधी नीति पर विचार करती तो शिक्षा में गुणात्मक सुधार हो सकता है।

शिक्षा के अतिरिक्त उन्होंने नियोजन, विषेषकर स्थानीय नियोजन पर कार्य किया था। वे चाहते थे कि स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों , प्रतिभाओं और आवकताओं तथा भौतिक सुविधाओं को दृष्टिगत कर ही योजनायें बनाई जाय तथा केन्द्र सरकार की संस्तुति व वित्तीय अनुदान से पूर्व उन्हें निर्धारित समय के अन्तर्गत पूर्ण किया जाय। इससे स्थानीय बेरोजगारी व अनियोजित विकास जैसी समस्याऐं नहीं उभरेंगी। नियोजन के बारे में अपनी स्पस्ट अवधारणा के कारण ही लम्बे समय तक वे उत्तरप्रदेश योजना आयोग में सदस्य व सलाहकार के रूप में प्रतिष्ठित रहे।

व्यक्तिगत जीवन में प्रताप भैयया, भौतिक सुख सुविधाओं व जिन्दगी की लडाई में भाग-दौड करते रहे। प्रातः से लेकर देर रात्रि तक शायद ही कोई पल होगा जो जनहित व जनकल्याण में न बीता हो। उनका जीवन एकदम नियोजित रहता था। वे बिना समय निर्धारित किये कोई कार्य नहीं करते थे। वर्ष भर का कार्यक्रम, समय व स्थान सहित एक कलैंण्डर के रूप में वे पहले ही तैयार कर लेते थे। और फिर वहीं कार्यक्रम निरन्तर चलता था, इसमें संशोधन की गुंजाइश नहीं रहती थी। प्रताप भैयया समय के बहुत पाबन्द थे। इतने समय के पाबन्द केवल पश्चिमी देशों के लोग ही दिखाई देते हैं जो समय से आगे निकल जाना चाहते थे। वे समय की कीमत पहचानने में कभी भूल नहीं करते थे, समय के साथ साथ संयम पूर्ण जीवन की महत्ता उन्हें सदा स्मरण रहती थी। तभी तो अधिक आयु होने पर भी उनमें युवाओं की तरह उर्जा व स्फूर्ति निरन्तर बनी रहती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि वे पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देशाई की भांति ही संयम पूर्ण व सदाबहार व्यक्तित्व के लोगों में एक अमिट छाप छोड गये।

अपने लक्ष्य के प्रति सदा निष्ठावान व प्रयत्नषील प्रताप भैयया परिश्रम व अनवरत संस्कृति के कायल थे। उन्हें कभी थका हारा , कभी आराम करते हुए, कभी व्यर्थ की अनर्गल वार्तालाप में लिप्त पाया जाना नितान्त असम्भव था। वे विचारों से आधुनिक,खानपान व वेषभूषा से परम्परावादी नजर आते थे। उनके सानिध्य में आकर व्यक्ति महसुस करता था- कि मुझे बहुत कुछ करना है, अभी तक मैंने कुछ भी नहीं किया है। वे जानते थे कि इस देश के नौनिहाल को ही नव भारत के निमार्ण हेतु अभिप्रेरित किया जा सकता है। इसलिए वे सर्वप्रथम बालकों व नवयुवकों का दिल जीतकर उन्हैं नई राह दिखाने का कार्य कर रहे थे। प्रताप भैयया द्वारा खोले गए अनेक पाठशालाएं, उच्चशिक्षा के केन्द्र, विचार केन्द्र, नवजागरण की अलख जगाने में सफल स्थापित हुए। यह पर्वतीय अंचल तो शिक्षा, संस्कृति व सामाजिक जागरण के विविध कार्यक्रमों से निरन्तर लाभान्वित होता रहा। दो टूक बात करने वाले भैयया जी अपने स्पष्ट मान्यताओं व विचारधाराओं के कारण काफी लोकप्रिय रहे। भले ही कुछ लोग वैचारिक मतभेदों के कारण यदा- कदा उनके आलोचक बने रहे । पर वे उनके व्यवहारिक जीवन दर्शन व स्पष्टवादिता तथा उनके कार्य करके दिखा देने की भावना की सराहना किये विना नहीं रह सकते थे। आज का नवयुवक जो सही पथ प्रदर्षन के अभाव में भटकाव की स्थिति में है, प्रताप
भैयया शरीके लोंगों से सही राह पाने की उम्मीद कर सकते थे। उनकी सादगी , सेवा की भावना, शुद्ध साधन व शुद्ध लक्ष्य का सन्देश सतत सक्रियता, हमारे वर्तमान समाज के युवा वर्ग को उग्र पाश्चात्य प्रेम की भावना से विमुख होकर अपने ही देश की माटी में अपनी जडें तलाश करने हेतु विवश करेगें।

एक समाज सुधारक की इस समाज को देन और क्या हो सकती है। एक स्व-निर्मित व्यक्तित्व , जिसे समाज ने सिर आखों पर उठाया और एक कार्य विशेष के लिए रख छोडा, कि वह आने वाली पीढी को विरासत सेे जोडने का उत्तरदायित्व संभाले और यह काम केवल के शिक्षा के माध्यम से ही संभव था। स्वामी विवेकानन्द जी ने एक बार कहा था- शिक्षा के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उपयुक्त बनाने के सिवाय मेरी कोई और उच्चाकांक्षा नहीं है। स्वामी जी का यह सन्देश प्रत्यक्षतः भैयया जी के मर्म में घर कर गया होगा, और उन्होंने समाज के अन्तिम व्यक्ति को मुख्यधारा तक जोडने का बीडा उठाया। एक ध्वस्त होती मान्यता को पुनर्स्थापित करने की तडफ थी प्रताप भैयया में। एक ऐसा व्यक्ति जो पल- पल व्यस्त है, स्वयं के लिए कम, औरों के लिए अधिक। सर्वहारा वर्ग को समर्पित भैयया वह क्रियाशील व्यक्ति थे, जिसे विपरीत परिस्थितयों में भी हताश नहीं देखा किसी ने। राजनीति के झंझावत ने कई बार उन्हें हासिये पर ला छोडा, किन्तु न वे थके , न हारे और न ही निष्क्रिय हुए। चिन्तक और विचारक प्रताप भैयया भारतीय राजनीति के ष्लाघा आचार्य नरेन्द्र देव, लोहिया, युसुफ मेहरअली ,जयप्रकाश नारायण के द्वारा प्रतिपादित विचारधारा की अलख जगाने वालों की पंकित के पहले सिपाही थे। कई गरिमामय और उत्तरदायित्वपूर्ण पदों का निर्वहन करने का अहम उन्हें छू नही सका। उच्च आंकाक्षी होना मनुष्य का स्वभाव है। पर उन्होंने अपनी आकांक्षा को उपलब्धि में परिवर्तित करने के लिए कभी शॉर्टकट नही खेाजा। 23 अगस्त 2010 को जब यह महान आत्मा परम तत्व में विलीन हुई तो असंख्य लोगों ने उन्हें अपनी नम आखों से हमेशा के लिए विदा कर दिया। पर आज के सन्दर्भ में उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग हम सब के लिए प्रासंगिक एवं अनुकरणकीय है।

इस लेख की लेखिका श्रीमती तारा ,प्रधानाचार्य ,राष्ट्रीय शहीद सैनिक स्मारक विद्यापीठ नैनीताल हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here