क्या है भिटौली और क्या है इसका महत्त्व Bhitauli Lok Parv

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प्रो ललित तिवारी , नैनीताल ( Professor Lalit Tiwari , Nainital )

संस्कृति एवम परंपराएं मानव को जोड़ने का काम करती है तथा आपसी स्नेह एवम प्रेम के साथ मानवता को मजबूत करते है । उत्तराखंड की इन्ही विशेष परंपराओं में शामिल भिटौली Bhitauli जिसका अर्थ ही भेंट अथवा मुलाकात करना है । विशेष परंपरा यहां की भौगोलिक परिस्थितियों, संसाधनों की कमी, व्यस्त जीवन शैली के कारण विवाहित महिला सालों तक अपने मायके नही जा पाती तो ऐसे में चैत्र में भिटौली के मध्यम से भाई अथवा पिता अपनी विवाहित बहन पुत्री के ससुराल जाकर उससे भेंट करते है ।साई जिससे चावल को पीस कर घी के साथ हलवा बनाया जाता है ये भिटौली का मुख्य पकवान है के साथ पुआ ,सिंघल ,मिठाई पकवान ,वस्त्र, लेकर उसके ससुराल जाते है । मायके के इस अटूट प्रेम, मिलन को ही भिटौली कहा जाता है। सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी उल्लास से निभाई जाती है। उत्तराखंड की संस्कृति, त्योहार और रीति रिवाजों का अपना अलग अंदाज है. और ये ही इसकी अलग पहचान बनाते है । पूरी दुनिया से अलग लोकपर्व भिटोली दशकों से चली आ रही एक सामाजिक परंपरा है, और यह परंपरा आज भी जीवित है. यही कारण है कि उत्तराखंड में चैत का पूरा महीना भिटोली के महीने के रूप में मनाया जाता है. जब जंगलों में बुरांस , प्योली खिलते तथा खेती का काम भी कम हो जाता है । Bhitauli

इसलिये अपनी शादीशुदा लड़की से कम से कम सालभर में एक बार मिलने और उसको भेंट देने के प्रयोजन से ही यह परम्परा शुरू हुई. भाई-बहन के प्यार को समर्पित यह रिवाज सिर्फ उत्तराखंड का ही है । विवाहित बहनों को चैत का महीना आते ही अपने मायके से आने वाली ‘भिटोली’ की सौगात का इंतजार रहता है. भिटोली शब्द बहुत ही मार्मिक ”ना बासा घुघुती चैत की, याद आ जैछे मैके मैते की.” ये पहाड़ी गीत विशेष रूप से भिटोली के लिये गाया जाता है. ये बोल आज भी महिलाओं को भाव विभोर कर देते हैं. ना जाने आज भी पहाड़ के कितने घरों में आंसू पोंछते हुए पकवान बनते है।Bhitauli


आधुनिकता के साथ परंपरा बदल रही है भिटोली Bhitauli परम्पराऔर अब ये औपचारिकता मात्र रह गयी है. हलवा, पुवे, पूरी, खीर, खजूरे , साही जैसे व्यंजन बनने कम हो गये हैं. अब फ़ोन पर बात करके और गूगल पे, फ़ोन पे से शादीशुदा बहन-बेटियों को रुपये भेजकर औपचारिकता पूरी हो रही है. इसे चैत्र के पहले दिन लोकपर्व फूलदेई जिससे फूलो का पर्व कहते है से माह पूर्ण होने तक मनाया जाता है। भिटौली से प्राप्त मिठाइयाँ एवम पकवान महिलाएँ अपने पड़ोसियों में बाँटती हैं और उन्हें विशेष हलुवा खाने के लिए भी आमंत्रित करती हैं ।

लेखक प्रो ललित तिवारी , नैनीताल ( Professor Lalit Tiwari , Nainital ) डिपार्टमेंट ऑफ़ फॉरेस्ट्री कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल में कार्यरत हैं और साथ ही कुमाऊं की धर्म , संस्कृति , लोक पर्व एवं परम्पराओं में गूढ़ ज्ञान रखते हैं और इनके संवर्धन के प्रति लगातार कार्यरत एवं समर्पित हैं।

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