मकर संक्रांति एवं उत्तरायणी पर्व- आखिर मकर संक्रांति को क्यों कहा जाता है उत्तरायण?

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मकर संक्रांति, हिन्दी कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण और सुखद त्योहारों में से एक है, जिसे लोग सुख समृद्धि, और आत्मा के नए पथों की शुरुआत का प्रतीक मानते हैं। यह पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है और इस दिन सूर्य देव उत्तरायण में मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

महत्व:
मकर संक्रांति को उत्तरायणी पर्व के रूप में भी जाना जाता है, जो सूर्य की उत्तर दिशा में गतिमान होने वाली पहली दिन को संक्रांति कहा जाता है। इस दिन को एक नए समय की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है और लोग इसे नए संभावनाओं, नए उत्साह के साथ स्वागत करते हैं।

पौराणिक कथा:
मकर संक्रांति के पीछे एक पौराणिक कथा भी छिपी है। सूर्यपुत्र शनि, जिन्होंने अपने पिता सूर्य देव को दुर्वचन कहा था, उन्हें प्रसन्न करने के लिए उन्होंने मकर राशि की ओर मुड़ लिया था। इसलिए, मकर संक्रांति पर्व को शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

उत्तरायणी पर्व का महत्व:
उत्तरायणी पर्व, किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन से ही गन्ने की कटाई का समय शुरु होता है और लोग नए फसलों की बेहतर पैदावार की कामना करते हैं।

पर्व का आयोजन:
मकर संक्रांति के दिन लोग बालकों के साथ खुले मैदानों में पतंग उड़ाते हैं और मिठाईयों का सेवन करते हैं। इस दिन खिचड़ी, तिल और गुड़ बनाकर खाई जाती है, जो लोग इस अवसर पर एक-दूसरे को भेजते हैं।

सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय एकता:
मकर संक्रांति भारतीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है, जिसमें विभिन्न राज्यों और समुदायों के लोग एक साथ इसे मनाते हैं। यह एक परंपरागत रूप से मनाया जाने वाला पर्व है जो लोगों को समृद्धि और समृद्धि की ओर मोड़ता है।

समापन:
मकर संक्रांति और उत्तरायणी पर्व का महत्वपूर्ण संदेश है – नए और उत्तम के प्रति आत्मविश्वास बनाए रखना। यह एक आत्मा समर्पित पर्व है जो लोगों को संजीवनी बूँदों की तरह नए संभावनाओं और संगीत की ऊर्जा से बहुमूल्य रूप से युक्त करता है।

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